मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि क्रोध के आवेग में किसी चीज को उठाकर फेंकने से या मारने से मनुष्य के अंदर की भड़ास निकल जाती है तथा उसके जल्दी शांत हो जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
इसके विपरीत कुछ लोगों को गुस्सा करने की आदत पड़ जाती है जिससे वे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। गुस्सा दबाना या उसे अभिव्यक्त न करना शुरू में किसी विवशता के कारण होता है, जो क्रमश: आदत का रूप ले लेता है। सच तो यह है कि क्रोध की आग बुझती नहीं वरन अंदर ही अंदर सुलगती रहती है।
इस कारण अक्सर लोग खासकर युवा भयंकर निराशा का शिकार हो जाते हैं और नशीली चीजों के सेवन की ओर अग्रसर हो जाते हैं। गुस्सा दबाने का असर हमारे मस्तिष्क पर भी पड़ता है। एक शोध के अनुसार गुस्सा दबाने से कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। इस बात के प्रमाण हैं कि यदि मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त करे, विशेषकर गुस्से को, तो वह शारीरिक दर्द से मुक्ति पा सकता है। शरीर के अंदर भावनाओं के संग्रह से शरीर व मस्तिष्क दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्राय: देखा गया है कि जोड़ों के दर्द में मुट्ठियाँ भींच जाती हैं, जो क्रोध अभिव्यक्त करने का ही एक तरीका है।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें बात-बात पर गुस्सा आता है - चाहे वे किसी ट्रैफिक जाम में फँस गए हों या फिर लंबी लाइन में खड़े इंतजार कर रहे हों। वे किसी असुविधा को सहन नहीं कर पाते और हमेशश दूसरों पर इल्जाम लगाते हैं। फलत: उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, जिससे दिल का दौरा अथवा पक्षाघात होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऐसा करने से दोनों ही एक-दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम व विश्वास व्यक्त कर सकेंगे और देखेंगे कि एक-दूसरे को गलतियाँ, बताने पर भी उनके संबंधों पर उसका कोई बुरा असर नहीं होता है। अपने बच्चों को भी यह सिखाना चाहिए कि गुस्सा व्यक्त करना कोई गलत बात नहीं। वे अपनी सच्ची भावनाओं को हमारे सामने व्यक्त कर सकते हैं। यदि वे हमसे नाराज हैं तो इसको छिपाने की आवश्यकता नहीं। यदि वे हमारे ऊपर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे हमसे नफरत करते हैं। सच तो यह है कि क्रोध भी प्रेम की अभिव्यक्ति का एक प्रारूप है।
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