Saturday, February 13, 2010

गुस्से में भी हो प्यार

क्रोध या गुस्सा सामान्यत: एक अवगुण है जो थोड़ा बहुत सब में होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई आवश्यकता से अधिक गुस्सा करता है तो कोई कम। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें गुस्सा जरूर आता है, लेकिन वे उसे व्यक्त नहीं करते। ऐसा कभी आदतवश होता है और कभी विवशता के कारण। पर यह सत्य है कि हम सभी को कभी न कभी किसी न किसी बात पर गुस्सा आता ही है, क्योंकि अन्य अनुभूतियों की तरह यह भी एक अनुभू‍ति है। अक्सर लोग जब अपना क्रोध उस आदमी पर व्यक्त नहीं कर पाते, जिस पर वे करना चाहते हैं तब वे अपना गुस्सा दूसरी चीजों पर निकालते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है‍‍ कि क्रोध के आवेग में किसी चीज को उठाकर फेंकने से या मारने से मनुष्य के अंदर की भड़ास निकल जाती है तथा उसके जल्दी शांत हो जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

इसके विपरीत कुछ लोगों को गुस्सा करने की आदत पड़ जाती है जिससे वे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। गुस्सा दबाना या उसे अभिव्यक्त न करना शुरू में किसी विवशता के कारण होता है, जो क्रमश: आदत का रूप ले लेता है। सच तो यह है कि क्रोध की आग बुझती नहीं ‍वरन अंदर ही अंदर सुलगती रहती है।

इस कारण अक्सर लोग खासकर युवा भयंकर निराशा का शिकार हो जाते हैं और नशीली चीजों के सेवन की ओर अग्रसर हो जाते हैं। गुस्सा दबाने का असर हमारे मस्तिष्क पर भी पड़ता है। एक शोध के अनुसार गुस्सा दबाने से कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। इस बात के प्रमाण हैं कि यदि मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त करे, विशेषकर गुस्से को, तो वह शारीरिक दर्द से मुक्ति पा सकता है। शरीर के अंदर भावनाओं के संग्रह से शरीर व मस्तिष्क दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्राय: देखा गया है कि जोड़ों के दर्द में मुट्‍ठियाँ भींच जाती हैं, जो क्रोध अभिव्यक्त करने का ही एक तरीका है।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें बात-बात पर गुस्सा आता है - चाहे वे किसी ट्रैफिक जाम में फँस गए हों या फिर लंबी लाइन में खड़े इंतजार कर रहे हों। वे किसी असुविधा को सहन नहीं कर पाते और हमेशश दूसरों पर इल्जाम लगाते हैं। फलत: उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, जिससे दिल का दौरा अथवा पक्षाघात होने की संभावना बढ़ जाती है।




गुस्सा व्यक्त करते समय ध्यान दें कि आपकी आवाज‍ किस प्रकार बदल रही है। सामने बैठे व्यक्ति से यह न कहें, 'तुमने मेरे साथ ऐसा किया' क्योंकि ऐसा कहने से आप उसे अपने गुस्से के विषय में बता रहे हैं, न कि अपना गुस्सा प्रकट कर रही हैं। इसके बजाय कहें 'मैं तुमसे नाराज हूँ' या 'मैं तुमसे नफरत करती हूँ 'या मुझे तुम्हारे पर इतना ज्यादा गुस्सा आता है क्योंकि तुमने मेरे साथ ऐसा-वैसा किया।' नकारात्मक भावनाओं को जिस प्रकार अ‍नुभव किया जाता है, यदि उसी रूप में अभिव्यक्त कर दिया जाए तो इसके हानिकारक परिणामों से बचा जा सकता है। पति-पत्नी अक्सर एक-दूसरे के प्रति अपना रोष ना प्रकट कर उसे मन ही मन में छिपाए रखते हैं। जबकि जरूरत है उसे सही तरीके से अभिव्यक्त करने की।

ऐसा करने से दोनों ही एक-दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम व‍ विश्वास व्यक्त कर सकेंगे और देखेंगे कि एक-दूसरे को गलतियाँ, बताने पर भी उनके संबंधों पर उसका कोई बुरा असर नहीं होता है। अपने बच्चों को भी यह सिखाना चाहिए कि गुस्सा व्यक्त करना कोई गलत बात नहीं। वे अपनी सच्ची भावनाओं को हमारे सामने व्यक्त कर सकते हैं। यदि वे हमसे नाराज हैं तो इसको छिपाने की आवश्यकता नहीं। यदि वे हमारे ऊपर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे हमसे नफरत करते हैं। सच तो यह है कि क्रोध भी प्रेम की अभिव्यक्ति का एक प्रारूप है।

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