Saturday, February 13, 2010

एक-दूसरे में क्या देखते हैं प्रेमी?













ऐसे लोग जो प्रेम करते हैं वे आखिर एक-दूसरे में क्या देखते हैं। वे मानते हैं कि कोई महिला या पुरुष सम्पूर्ण नहीं होता। मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि ऐसे लोगों के लिए दरअसल एक-दूसरे की इच्छाएँ और आकांक्षाएँ ही मायने रखती हैं। वे कभी आपस में शारीरिक आकर्षण नहीं देखते।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं- कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं होता लेकिन उसकी कुछ खूबियाँ उसे खूबसूरत और पूर्ण व्यक्ति बना देती हैं। लेकिन महिलाएँ इस मामले में थोड़ी अलग होती हैं। वे ऐसे पुरुष प्रेमी तलाश करती हैं जो दूसरों से अलग हों। लेकिन उन्हें पाने के बाद भी वे उनसे शिकायत कर सकती हैं कि वे सम्पूर्ण नहीं हैं। कई बार महिलाएँ अपने प्रेमी के सामने ही दूसरे पुरुषों की तारीफ भी करती हैं। म मनोचिकित्सक कहते हैं कि ऐसी महिलाएँ भ्रमित होती हैं। कई बार वे अपना साथी इसलिए खो देती हैं कि उन्हें लगता है कि वह दूसरे पुरुषों में जितना सक्रिय और क्रियाशील नहीं है।

लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए होता है कि अधिकतर महिलाएँ अपने प्रेमियों में गुस्सेदार व्यक्ति नहीं देखनचाहतीं। यदि ऐसे होता है तो वे हैरान होती हैं कि आखिर उसे क्या हो गया है। महिलाओं का मानना है कि उनकप्रेमी ऐसा नहीं हो सकता। पर यह सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं है। पुरुष भी कुऐसही महिलाओतलामेरहतहैंपुरुष प्रेम में पड़ते ही जिस महिला से दो-चार होते हैं वह उनकी नजर में एक बेहतर मेजबान, माँ और प्रेयसी होती है। वे चाहते हैं कि वे उस महिला की आँखों में पुतलियों की तरह रहें पर वे नहीं जानते कि पुतलियाँ भी तो स्थिर नहीं होतीं। जब ऐसा होता है तो पुरुष भी वही सोचते हैं, जो महिलाएँ सोचती हैं कि अरे! यह क्या हुआ? यह वह पुरुष या महिला तो नहीं।

मनोविश्लेषक गीतिका कपूर कहती हैं- कोई भी महिला या पुरुष सदा एक जैसा नहीं रह सकता। सबके मन और इच्छाओं में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं! इसलिए प्रेम में बाहरी सौंदर्य अधिक दिन नहीं चलता। यह अंतर्संबंधों की बात है। मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि प्रायः हम खुद को स्थिर बनाए रखने के लिए हमेशा एक स्थिर रहने वाला साथी तलाश करते हैं जबकि हर व्यक्ति की भावनाएँ अलग-अलग समय पर अलग होती हैं। संबंधों में कई बार खटास आ जाती है लेकिन यदि स्त्री-पुरुष एक-दूसरे से सच्चा प्रेम करते हैं व उनमें सम्मान की भावना है तो उनका प्रेम और आकर्षण बना रहता है। यह जानने के लिए पहले प्रेम में पड़ना जरूरी है। गीतिका कहती हैं- हालाँकि यह बहुत आसान नहीं। लेकिन प्रेम के आधार पर बना संबंध बहुत कम खराब होता है।

गहरे रिश्तों के लिए इंतजार











हेलो दोस्तो! हम सभी कितनी अलग-अलग फितरत के होते हैं। कोई बिना सोचे-समझे किसी की मुश्किलें हल करने निकल पड़ता है तो कोई खूब सोच-समझकर दूसरों के जीवन में अड़चनें पैदा करता है। कोई हजार कोशिशों के बाद भी किसी पर विश्वास करने को तैयार नहीं होता तो कोई धोखा खा-खाकर भी आँखें मूँदकर फिर से भरोसा कर लेता है। कुछ ऐसे हैं, जिन पर कितना भी प्यार लुटाओ वह तनहा-सा ही दिखता है और कोई इस कदर प्यार से भरा होता है कि किसी की मायूस जिंदगी में सच्चे प्यार की खुशी भरने के लिए हर दुख को गले लगा लेता है। पर क्या किसी की जिंदगी में बहार लाने के लिए अपने जीवन में वीरानी भर लेना उचित होगा?

किसी को भरोसा और विश्वास का सबक सिखाने के लिए खुद अनजानी राहों पर निकल पड़ना ठीक होगा! प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए तो ठीक है वरना एक व्यक्ति हमेशा परीक्षा देता रहेगा दूसरा जीवन भर उससे इम्तिहान लेता रहेगा। ऐसे रिश्ते को प्यार नहीं उदारता के साथ तरस खाना कहा जाता है। सच कहा जाए तो यह भावना प्यार के रिश्ते में बेहद निचले दर्जे का है। पर कुछ लोग बेहद विनम्रता का सेवाभाव रखते हैं और अपना जीवन प्यार करने जैसे महान कार्य में न्योछावर कर देना चाहते हैं।

ऐसी ही भावना से ओतप्रोत हैं प्रकाश जी (बदला हुआ नाम) जो बिना मिले, बिना देखे और बगैर अच्छी तरह जाने एक अनजान लड़की से प्रेम करने लगे हैं। एक लड़की जो सरकारी नौकरी में है और उनसे उम्र में थोड़ी बड़ी हैं, उनकी फोन फ्रेंड बन गई है। रोजाना फोन पर कई विषयों पर बातें करते हुए उन्होंने आपस में बहुत-सी बातें शेयर कीं और प्रकाश जी उनके संवाद से मुतास्सिर होकर उनके मुरीद हो गए।

प्रकाश ने अपना फोटो तो उन्हें मेल कर दिया पर उनका फोटो देखे बिना ही उनके लिए प्यार महसूस करने लगे। जब उन्होंने अपनी फोन दोस्त को दोस्ती के बजाय अपने प्यार का अहसास कराना चाहा तो उसने उन्हें दोस्ती तक ही महदूद रहने की सलाह दी और साथ में यह राज भी बताया कि उसकी टाँगों में मामूली-सी कमी है और वह अपनी इस कमजोरी के लिए उनका सहारा नहीं लेना चाहती। उधर प्रकाश को लगता है कि उसकी दोस्त कमजोरी नहीं बल्कि उनकी ताकत होगी। वह उसे अपने जीवन में लाना चाहते हैं।

सच्चे प्यार का जो आधार होना चाहिए वह आपकी दोस्ती में है। ढेर सारा संवाद, हर परिस्थिति में एक जैसी भावना और अपने साथी पर प्यार लुटाने के लिए मचलता मन।


प्रकाश जी, आपकी जो भावना है, मन की सच्चाई और पवित्रता है उसकी जितनी भी सराहना की जाए कम है। वैसे देखें तो सच्चे प्यार का जो आधार होना चाहिए वह आपकी दोस्ती में है। ढेर सारा संवाद, हर परिस्थिति में एक जैसी भावना और अपने साथी पर प्यार लुटाने के लिए मचलता मन। दुनिया के बने-बनाए पैमाने की परवाह किए बिना अपने मन पर विश्वास करने की हिम्मत और इन सबसे बढ़कर, अपने साथी के लिए अपार श्रद्धा, इज्जत और समाज के सामने उसे सम्मान दिलाने की दिली तमन्ना। हर कोई अपने प्रेमी में इन्हीं चीजों को ढूँढ़ता है पर आज की दुनिया में ये विरले ही मिलते हैं। आपने पूछा है आपको अपनी फोन दोस्त के जवाब में कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए, एक दोस्त की तरह या प्रेमी की तरह?

प्रकाश जी, आपको एक दोस्त की तरह पेश आना चाहिए। अभी प्यार का इजहार करने के लिए बीता हुआ समय नाकाफी है। अभी तो बस आपने उसकी जो छबि बनाई है, वह है एक प्यारी दोस्त की जो आपको समझती है और जो अपनी शारीरिक कमी के कारण इस दुनिया का पूरा मजा नहीं ले पा रही है इसलिए आप उसे संपूर्णता का अहसास कराना चाहते हैं। अभी आप बिना किसी अपेक्षा के खुद को लुटाने को तैयार हैं। पर जिंदगी बहुत लंबी है और प्यार का दरख्त केवल एक के त्याग से नहीं सींचा जा सकता है। बेशक, आपके भीतर बेइंतहा प्यार भरा हुआ है जिसे आप सही पात्र पर लुटाना चाहते हैं। मैं यह नहीं कहती कि आपकी फोन दोस्त सही पात्र नहीं है पर अभी निर्णय लेना जल्दबाजी होगी।

अभी केवल दोस्त रहते हुए भी बहुत कुछ आप उनके लिए कर सकते हैं। जैसे उनके अंदर इतना आत्मविश्वास और सहजता भर देना कि उन्हें अपने आपको पोशीदा रखने की जरूरत न पड़े। उनको अपनी दोस्ती का इतना भरोसा दिलाना कि जरूरत पड़ने पर बिना किसी तकल्लुफ के वह आपको आवाज दे सके। अभी उनके भीतर असुरक्षा की भावना बहुत ही ज्यादा है। जैसे कि कोई उन्हें यदि पूरी तरह जानेगा तो वह दूर भाग जाएगा। यह भावना केवल आपके प्यार कर लेने या शादी कर लेने से समाप्त नहीं हो जाएगी। यह असुरक्षा प्यार के बंधन में पड़ने से अलग तरह से सामने आएगी और वह होगी आप पर पूर्ण नियंत्रण के रूप में। आप किसी से सामान्य दोस्ती भी रखेंगे तो वह असुरक्षित महसूस करेंगी और शक करेंगी।

महिला, पुरुष किसी की भी सहज मित्रता से उन्हें खौफ महसूस होगा और आप सफाई दे-देकर थक जाएँगे। कुछ लोगों का पारिवारिक वातावरण और उनकी मानसिक संरचना प्राकृतिक रूप से ही इतनी संतुलित और सरल होती है कि उसका व्यक्तित्व मोटे तौर पर महान सोच वाला ही होता है, क्षुद्र व्यवहार वह कर ही नहीं पाते पर असुरक्षित भावना वाले लोग अपने को महान साबित करने के लिए तरह-तरह की डींगें हाँकते हैं। सामने वाले को प्रभावित करने के लिए धड़ल्ले से झूठ बोलते हैं ताकि उनकी शख्सियत को लेकर लोग चमत्कृत रहें। मतलब यह है कि इस प्रकार की कुंठा कम आत्मविश्वास और असुरक्षित भावना वाले लोगों में पाई जाती है इसलिए उनके साथ संबंध निभा पाना हर समय अतिरिक्त शक्ति खोजता है। बेहतर है, पहले किसी को भली-भाँति जानें और खुद को जानने का मौका दें। रिश्ते के साथ न्याय का यही तकाजा है।

समय पर हो प्यार का इजहार









हेलो दोस्तो! कई बार हमें लगता है जीवन में हर चीज सही जगह ठिकाने पर है। हमारे रिश्ते, हमारा काम, सभी कुछ वैसा ही चल रहा है, जैसा हमने सोचा है। हमें महसूस होता है कि जीवन के हर पहलू को हम अपनी मर्जी से स्वरूप दे रहे हैं। इन सारे अहसासात के साथ हम तब तक बेहद सुकून से जीते रहते हैं जब तक कोई अप्रत्याशित घटना हमें आकर झकझोर न दे। उस समय हमें समझ में आता है कि हमारी पकड़ तलवार पर इसलिए मजबूत थी क्योंकि पानी का रुख भी उधर का ही था। अब जब बहाव अलग दिशा में है तो हमारी नैया डगमगाने लगी है।

जिस सोच को हम जितना व्यवस्थित और सुनियोजित मानकर चल रहे थे, दरअसल, उसकी सारी बुनियाद ही गलत नजर आने लगती है। फिर बार-बार यही अफसोस और पछतावा होता है काश यह बात हमें बहुत पहले समझ में आ जाती।

ऐसी ही मुश्किल घड़ी से गुजर रहे हैं आसिफ (नाम बदला हुआ) जो बीसीए के छात्र हैं और एमसीए की तैयारी कर रहे हैं। वह अपनी पाँच वर्ष पुरानी दोस्त स्वाति के जीवन में आए नए रिश्ते के कारण बेहद विचलित हो गए हैं। वह अपनी पढ़ाई भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। उनकी मुश्किल यह है कि वह अपनी यह मनोदशा अपनी दोस्त के सामने बयान नहीं कर सकते क्योंकि आसिफ को लगता है यदि दोस्त ने नाराज होकर दोस्ती तोड़ ली तो वह और भी मानसिक उलझन में पड़ जाएँगे।

यह प्रेम की भावना आपका डर है। प्रेम होता तो आप बहुत पहले महसूस करते और अपना प्रस्ताव रख चुके होते। आपको खुश होना चाहिए कि आपकी दोस्त को उसकी पसंद का साथी मिला है। नए रिश्ते से आहत व विचलित होने के बजाय आप तीनों अच्छे दोस्त बन जाएँ।
आसिफ जी, इतने वर्षों तक जब स्वाति केवल आपकी दोस्त थी और आपके मन में कभी प्रेम प्रस्ताव की भावना नहीं आई तो अब क्यों आप इतने विचलित हो रहे हैं। आपने शायद इसीलिए ऐसा किया होगा कि आप उन्हें मात्र मित्र के रूप में ही देखते होंगे। जब किसी अन्य व्यक्ति ने उसके सामने प्रेम का प्रस्ताव रखा तो उसे ठीक लगने पर उसने स्वीकार कर लिया। एक बात बताएँ कोई लड़की जिसे आप पसंद करते और वह आपके सामने प्रेम प्रस्ताव रखती तो आप क्या करते? क्या आप यह सोचते हैं कि जीवन भर आप और स्वाति दोस्त बने रहते और आप लोगों के जीवन में किसी को भी नहीं आना चाहिए। पूरी जिंदगी मित्रता के नाम। ऐसा भी संभव है, पर ऐसा कोई समझौता भी नहीं था आपके बीच। फिर यह हाय तौबा क्यों?

दरअसल, हर क्षेत्र में हम एकाधिकार रखने के लिए तड़पते रहते हैं। संयोगवश जब तक कोई उसमें घुसपैठ नहीं करता है, वह हमारी आदत बन जाती है और किसी भी आदत को छोड़ना कभी भी आसान नहीं होता। सारे तर्क धरे रह जाते हैं। अब तक स्वाति का समय आपके लिए था और आपका सुख-दुख स्वाति तक महफूज था पर अब आप अपनी दोस्त को लेकर निश्चित नहीं हैं ।

दोस्ती से बहुत ज्यादा निजीपन और नजदीकी लिए होता है प्रेम का रिश्ता। उन दोनों के एक हो जाने से आप खौफजदा हो गए हैं। अब आपको लगता है आप दोयम स्थान पर खड़े हैं। आप पछताते रहते हैं कि आपने पहले अपनी भावना को क्यों नहीं समझा। आपको अफसोस हो रहा है कि आज जो प्रेम आप अपनी दोस्त के लिए महसूस कर रहे हैं, क्यों नहीं इसका इजहार आपने पहले किया।

कई बार ऐसा होता है कि हम बाजार से बहुत ही खूबसूरत रंग का एक लिबास खरीद कर लाते हैं। उसे बार-बार देखते हैं और अपनी पसंद पर फख्र करते हैं। यदि किसी ने उसकी तारीफ कर दी तो हम बड़ी शान से बोलते हैं कि बहुत सारे रंगों के बीच से चुना है हमने यह रंग। देखो हमारी पसंद लाजवाब है पर फिर एक दिन हम उसी रंग से मिलता-जुलता एक शेड देखते हैं और वह हमें इतना ज्यादा अच्छा लगता है कि हमारा चुना हुआ रंग बेहद भद्दा लगने लगता है। अफसोस होता है क्यों जल्दबाजी की, थोड़ा और समय लगा लेते तो क्या बिगड़ जाता। ऐसी बातें आए दिन होती रहती हैं और हम भूल जाते हैं क्योंकि इसमें थोड़ा पैसा और समय लगा होता है पर रिश्तों में हमारी ढेर सारी भावनाएँ लगी होती हैं और जब वहाँ विकल्प के कारण कोई हाथ से जा रहा होता है तो हम कराह उठते हैं कि काश वह विकल्प हम ही होते।

आसिफ जी, आपने अब तक अपनी दोस्त को प्रेमिका की नजर से नहीं देखा है तो अचानक उसके सामने कैसे ऐसी भावना का जिक्र करेंगे। इतनी प्यारी और संतुलित सी दोस्ती समाप्त नहीं हो जाएगी बल्कि वह आपका सम्मान करना छोड़ देगी। यह प्रेम की भावना आपका डर है। प्रेम होता तो आप बहुत पहले महसूस करते और प्रस्ताव रख चुके होते। आपको खुश होना चाहिए कि आपकी दोस्त को उसकी पसंद का साथी मिला है। रिश्ते में यदि दिमाग साफ रखा जाए तो तकलीफ कम होती है और व्यवहार करना आसान हो जाता है। नए रिश्ते से आहत व विचलित होने के बजाय आप तीनों अच्छे दोस्त बन जाएँ और अपने लिए एक साथी की तलाश करें।

हिम्मत से बाँधें जीवन की डोर










दोस्तो! आशा है दृढ़ प्रतिज्ञा और संकल्प को याद रखते हुए आप नए वर्ष में अपनी योजनाओं को लागू करने की पूरी कोशिश करने में लगे होंगे। हमारे जीवन का जो भी मकसद या लक्ष्य होता है यदि हम उसका एक-चौथाई भाग भी हासिल कर पाते हैं तो हमें बेहद खुशी होती है और हमारा हौसला बुलंद होता है।

जीवन को खुशी-खुशी जीने का इससे बेहतर तरीका और कुछ हो भी नहीं सकता है। इसलिए पढ़ाई, करियर, रिश्ते जिस ओर भी आपने जो भी लक्ष्य बना रखा है, उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से हासिल करने की चेष्टा करनी चाहिए।

थोड़ी-बहुत बाधा से घबराकर अपने भविष्य एवं खुशी को दाँव पर नहीं लगा देना चाहिए क्योंकि उसके बाद जीवन भर पछताने के सिवाय और कुछ नहीं रह जाता है।

ऐसी ही छोटी-सी बाधा से घबराकर रंजन अपने प्यार को दाँव पर लगाने को मजबूर हैं। रंजन और उनकी दोस्त एक-दूसरे को चार सालों से बेहद प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। दोनों के परिवार भी तैयार हैं, सिवाय लड़की के पिता के। रंजन के परिवार में इस बात को लेकर ठन गई है कि जब तक लड़की के पिता रिश्ता लेकर खुद नहीं आते शादी नहीं हो सकती। इस अहं की लड़ाई में रंजन को लगता है कि कहीं उसकी दोस्त की शादी किसी और से कर दी गई तो वह जी नहीं पाएँगे।

रंजन जी, सही और उचित काम के लिए पूरी दुनिया की रजामंदी व सहमति लेकर नहीं चला जाता है। झूठे अहं को पालने के लिए न तो आप अपने जीवन और न ही प्यार के साथ न्याय करेंगे। किस बात के डर से आप दोनों शादी नहीं कर रहे हैं। एक तो आप दोनों को उस घर में नहीं रहना है जहाँ पर नाराज पिता हैं। आप २७ और आपकी दोस्त २५ वर्ष की हैं। आप दोनों की उम्र सही है और चार वर्षों से बेहद प्यार और समझदारी से आपने अपना रिश्ता निभाया है। यह बात आप दोनों के परिपक्व व्यक्तित्व की गवाही देती है। इतनी मुहब्बत और गहराई से सींचे गए रिश्ते को किसी के अहं की बलि पर चढ़ा देना कहाँ की अकलमंदी होगी।

एक-एक व्यक्ति को खोजकर आप यदि खुश करने चले तो फिर आप खुशहाल जीवन जीना भूल ही जाएँ। इनकार और नाराजगी की कोई विशेष वजह भी नहीं हैं। आपके भाई ने उन्हें कुछ सुना दिया था यही न। यकीन मानें यह नाराजगी वक्त के साथ समाप्त हो जाएगी। आप लोगों की खुशी के लिए यदि वे अपना गुस्सा नहीं थूक सकते तो आप क्यों अपनी जिंदगी तबाह करते हैं। वे बड़े हैं, आप लोगों की भलाई-बुराई उन्हें सोचनी चाहिए। यह जानते हुए भी कि आप दोनों की खुशी एक दूसरे से जुड़ी हुई है फिर भी उन्होंने अड़ियल रुख अपनाया हुआ है। जब वे बड़प्पन नहीं दिखा रहे हैं तो आप किस आधार पर उनका लिहाज कर रहे हैं।

आप लोगों के जीवनसाथी बनने का फैसला कोई आवेश में किया गया निर्णय नहीं है। चार वर्षों तक प्यार के रिश्ते को इस प्रकार निभाना कि उसका ग्राफ ऊपर ही ऊपर जाए और एक दूजे में परिपूर्णता का अहसास हो आज के समय में सुखद बात है। ऐसे रिश्ते को दूसरों की वजह से ठुकराना अक्लमंदी नहीं है।

हमारे जीवन का जो भी मकसद या लक्ष्य होता है यदि हम उसका एक-चौथाई भाग भी हासिल कर पाते हैं तो हमें बेहद खुशी होती है और हमारा हौसला बुलंद होता है।
प्यार, खुशी और एक-दूसरे को निभाने की ख्वाहिश का मेल बहुत ही मुश्किल से होता है। एक-दूसरे के लिए हर हाल में साथ देने की सच्ची नीयत भी बड़ी मुश्किल से उपजती है। इस भावना को सिर-आंखों पर संभालकर रखनी चाहिए। किसी भी रिश्ते को इतनी संदुरता देने के लिए बेइंतहा मेहनत करनी पड़ती है। एक-दूसरे की भावनाओं का हर पल ख्याल रखने के बाद रिश्ता इतना मजबूत होता जाता है कि जीवन भर साथ निभाने के फैसले पर हम पहुँचते हैं। इस मुकाम पर पहुँचने के बाद यूँ हताश होकर हार मान जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

एक ऐसे व्यक्ति, जिन्होंने अपना जीवन अपनी मर्जी से जी लिया है, उसकी खातिर आप अपनी मर्जी न छोड़ें। आप उनके खिलाफ जाकर कोई पाप या गुनाह नहीं कर रहे हैं। उनकी नाराजगी की वजह वाजिब नहीं है। इसलिए बेधड़क, बिना किसी संकोच और ग्लानि के खुशी-खुशी शादी करें। आप दोनों के लिए बेहद प्यार भरा भविष्य इंतजार कर रहा है। नए वर्ष में नई उमंगों के साथ जीवन जीने का सपथ लें। आपके आत्मविश्वास और संजीदा कदम का सभी ओर स्वागत होगा। देर-सबेर आपको सभी अपनों का आशीर्वाद मिलेगा।

प्यार में जल्दबाजी अच्छी नहीं











हेलो दोस्तो! जब हमें कोई चीज पसंद आती है तो हम उसे पाने के लिए तड़प उठते हैं। सारी कोशिश यही रहती है कि वह चीज हमें किसी भी तरह मिल जाए। जमीन-आसमान एक करने के बाद वह चीज हमें मिल तो जाती है पर थोड़े ही दिनों में हमें महसूस होने लगता है कि वह चीज हमारी उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। पछतावा होता है कि नाहक हमने अपनी उतनी मेहनत, धन और समय उस पर बरबाद किया। ठीक यही तजुर्बा व अहसास रिश्तों में जल्दबाजी करने पर भी होता है। प्यार के रिश्ते की शुरुआत करने में धीमी गति से आगे बढ़ना बहुत ही समझदारी भरा लव मंत्र है।

जब दो लोग किसी भी कारणवश बार-बार मिलते हैं तो काम के अलावा भी संवाद बनता है। रोजमर्रा की बातों में हँसी-मजाक भी शामिल होने लगता है। पहचान बढ़ती जाती है तो एक-दूसरे से कभी तबीयत का हालचाल भी पूछने लगते हैं। भूख की बात सुनने पर कोई अपना टिफिन भी पेश कर देता है। कार्य या पढ़ाई आदि की समस्या आने पर सलाह-मशविरा भी करने लगते हैं। ज्यों-ज्यों सहजता बढ़ती जाती है प्रतिक्रिया ज्यादा निजी होती जाती है।

पोशाक, हेयर स्टाइल, स्मार्ट लुक, दुखी चेहरा, खुशी का कारण जैसे कमेंट करना आम बातचीत का हिस्सा बन जाता है। ये सारी बातें आम व्यवहारिकता की बातें हैं। इसे प्यार के रिश्ते की शुरुआत या बुनियाद नहीं कहा जा सकता। पर ऐसी ही सहज बातचीत को कई बार व्यक्ति बहुत ही गंभीरता से लेने लगता है। उसे उन सारी नोंक-झोंक और रोजमर्रा की मिजाज पुर्सी में प्यार का गुमान होने लगता है। अमूमन यह वहम पाल लिया जाता है कि सामने वाला भी प्यार में मुबतला है और इसीलिए सभी सहज व्यवहार को विशेष दृष्टि से देखने की कोशिश की जाती है। यदि बीमार पड़ने पर हमदर्दी के साथ हालचाल पूछ लिया गया तो प्यार का अनुमान लगाने वाली बात और भी पक्की मान ली जाती है।

मजेदार बात यह है कि सामने वाला बस इस व्यवहारिकता को सहजता से निभाता जा रहा होता है लेकिन मन में प्यार की गलतफहमी पालने वाला हर टिप्पणी, हर सहयोग, हंसी, छुअन आदि को बस प्यार की मुहर लगाकर ही देखने लगता है। जबकि सामने वाला इस विशेष विश्लेषण से बिल्कुल अनजान है। उसे रत्ती बराबर भी अंदेशा नहीं होता है कि उसके सामान्य से व्यवहार का अलग मतलब निकाला जा रहा है। उसे क्या पता है कि अपने मन में प्यार की खयाली दुनिया बसाकर कोई बहुत ही आगे बढ़ चुका है। और उसके बाद जब प्यार के मुगालते में रहने वाला अपनी मन की बात उस व्यक्ति के समक्ष रखता है तो सामने वाला हक्का-बक्का सा रह जाता है क्योंकि वह खुद को सामान्य दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं समझता है। बहुत संभव है कि उसका पहले से ही किसी के साथ प्यार का रिश्ता हो।




ऐसे में जब वह व्यक्ति अपनी स्थिति साफ करता है तो प्यार का इजहार करने वाले के पैर के नीचे से जमीन खिसक जाती है। वह अवसाद में डूब जाता है। उसे लगता है उसके साथ धोखा हुआ है। उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है। इलजाम यह लगाया जाता है कि पहले से ही यह स्थिति क्यों नहीं साफ की गई। वह यह मानने को तैयार नहीं होता है कि इतनी नजदीकियाँ नहीं थी कि उसे प्यार के रिश्ते के बारे में बताया नहीं जाता। यदि सामने वाला भलमनसाहत में नम्रता से पेश आता है और गलतफहमी से पहुँचने वाले दुख के प्रति संवेदनशीलता का भाव रखता है तो और भी मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं।

इसकी वजह से एक तो प्रेम का इजहार करने वाला व्यक्ति उस मनोदशा से निकल नहीं पाता है, दूसरा यह मायने भी निकाला जाता है कि सामने वाले की गलती है इसीलिए उसे गिल्ट फील हो रहा है। इससे इजहार करने वाले की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है और उस भ्रम को तोड़ पाना कठिन हो जाता है। वह बहुत दिनों तक मानसिक तनाव से गुजरता है।

अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है। उसका आत्मविश्वास इतना हिल चुका होता है कि किसी की भावना की गहराई को न तो वह समझ पाता है और न ही उसका सही आकलन कर पाता है। सबसे दुखद यह होता है कि वह जीवन भर किसी के सामने कोई भी प्रस्ताव रखने से डरता है। दोस्तों, प्यार के मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है।

गुस्से में भी हो प्यार

क्रोध या गुस्सा सामान्यत: एक अवगुण है जो थोड़ा बहुत सब में होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई आवश्यकता से अधिक गुस्सा करता है तो कोई कम। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें गुस्सा जरूर आता है, लेकिन वे उसे व्यक्त नहीं करते। ऐसा कभी आदतवश होता है और कभी विवशता के कारण। पर यह सत्य है कि हम सभी को कभी न कभी किसी न किसी बात पर गुस्सा आता ही है, क्योंकि अन्य अनुभूतियों की तरह यह भी एक अनुभू‍ति है। अक्सर लोग जब अपना क्रोध उस आदमी पर व्यक्त नहीं कर पाते, जिस पर वे करना चाहते हैं तब वे अपना गुस्सा दूसरी चीजों पर निकालते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है‍‍ कि क्रोध के आवेग में किसी चीज को उठाकर फेंकने से या मारने से मनुष्य के अंदर की भड़ास निकल जाती है तथा उसके जल्दी शांत हो जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

इसके विपरीत कुछ लोगों को गुस्सा करने की आदत पड़ जाती है जिससे वे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। गुस्सा दबाना या उसे अभिव्यक्त न करना शुरू में किसी विवशता के कारण होता है, जो क्रमश: आदत का रूप ले लेता है। सच तो यह है कि क्रोध की आग बुझती नहीं ‍वरन अंदर ही अंदर सुलगती रहती है।

इस कारण अक्सर लोग खासकर युवा भयंकर निराशा का शिकार हो जाते हैं और नशीली चीजों के सेवन की ओर अग्रसर हो जाते हैं। गुस्सा दबाने का असर हमारे मस्तिष्क पर भी पड़ता है। एक शोध के अनुसार गुस्सा दबाने से कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। इस बात के प्रमाण हैं कि यदि मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त करे, विशेषकर गुस्से को, तो वह शारीरिक दर्द से मुक्ति पा सकता है। शरीर के अंदर भावनाओं के संग्रह से शरीर व मस्तिष्क दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्राय: देखा गया है कि जोड़ों के दर्द में मुट्‍ठियाँ भींच जाती हैं, जो क्रोध अभिव्यक्त करने का ही एक तरीका है।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें बात-बात पर गुस्सा आता है - चाहे वे किसी ट्रैफिक जाम में फँस गए हों या फिर लंबी लाइन में खड़े इंतजार कर रहे हों। वे किसी असुविधा को सहन नहीं कर पाते और हमेशश दूसरों पर इल्जाम लगाते हैं। फलत: उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, जिससे दिल का दौरा अथवा पक्षाघात होने की संभावना बढ़ जाती है।




गुस्सा व्यक्त करते समय ध्यान दें कि आपकी आवाज‍ किस प्रकार बदल रही है। सामने बैठे व्यक्ति से यह न कहें, 'तुमने मेरे साथ ऐसा किया' क्योंकि ऐसा कहने से आप उसे अपने गुस्से के विषय में बता रहे हैं, न कि अपना गुस्सा प्रकट कर रही हैं। इसके बजाय कहें 'मैं तुमसे नाराज हूँ' या 'मैं तुमसे नफरत करती हूँ 'या मुझे तुम्हारे पर इतना ज्यादा गुस्सा आता है क्योंकि तुमने मेरे साथ ऐसा-वैसा किया।' नकारात्मक भावनाओं को जिस प्रकार अ‍नुभव किया जाता है, यदि उसी रूप में अभिव्यक्त कर दिया जाए तो इसके हानिकारक परिणामों से बचा जा सकता है। पति-पत्नी अक्सर एक-दूसरे के प्रति अपना रोष ना प्रकट कर उसे मन ही मन में छिपाए रखते हैं। जबकि जरूरत है उसे सही तरीके से अभिव्यक्त करने की।

ऐसा करने से दोनों ही एक-दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम व‍ विश्वास व्यक्त कर सकेंगे और देखेंगे कि एक-दूसरे को गलतियाँ, बताने पर भी उनके संबंधों पर उसका कोई बुरा असर नहीं होता है। अपने बच्चों को भी यह सिखाना चाहिए कि गुस्सा व्यक्त करना कोई गलत बात नहीं। वे अपनी सच्ची भावनाओं को हमारे सामने व्यक्त कर सकते हैं। यदि वे हमसे नाराज हैं तो इसको छिपाने की आवश्यकता नहीं। यदि वे हमारे ऊपर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे हमसे नफरत करते हैं। सच तो यह है कि क्रोध भी प्रेम की अभिव्यक्ति का एक प्रारूप है।